जानें भारत की पहली शिक्षिका सावित्री बाई फुले की जीवनी पहली भारतीय महिला शिक्षक और प्रधानाध्यापिका के बारे में
भारत में महिलाओं को एक लम्बे समय तक दोयम दर्जे का नागरिक समझा जाता रहा है. यही कारण है कि उनकी जिंदगी को खाना बनाने और वंश को आगे बढ़ाने तक सीमित समझा गया था.
लेकिन इस पुरानी सोच वाले समाज में भी सावित्री बाई फुले जैसी महिला ने अन्य महिलाओं के उत्थान के लिए पढाई-लिखाई के लिए शिक्षा के इंतजाम मात्र 17 वर्ष की उम्र में सन 1848 में पुणे में देश का पहला गर्ल्स स्कूल खोलकर किया था.
सावित्री बाई फुले के योगदान को जिस तरह याद करना चाहिए, वैसे नहीं किया जाता

सावित्री बाई फुले ने उस दौर में कैसे स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाई होगी?
शिक्षा किसी भी देश या समाज के विकास का आधारभूत ढांचा होता है. जिस देश की शिक्षा प्रणाली उच्च कोटि की होती है, उस देश का विकास बहुत तेज गति से होता है. आज दुनिया भर में यह प्रमाणित हो चुका है कि शिक्षा हर एक नागरिक का सम्पूर्ण विकास करती है. एक ओर जहां अधिकांश अफ्रीकी देश केवल 25 से 50 प्रतिशत साक्षरता के चलते गृहयुद्ध की स्थिति में दरिद्री झेल रहे हैं. वहीं, पाश्चात्य देश 100 प्रतिशत के निकट की साक्षरता के चलते फलफूल रहे हैं. भारत में वर्तमान में यह 75 प्रतिशत के आस-पास है.
सावित्री बाई फुले के बारे में व्यक्तिगत जानकारी इस प्रकार है;-
पूरा नाम:- सावित्री बाई फुले
जन्म तिथि एवं स्थान:- 3 जनवरी 1831, नायगांव,, ब्रिटिश भारत (अब सतारा, महाराष्ट्र)
मृत्यु:- 10 मार्च 1897 (आयु 66 वर्ष), पुणे, महाराष्ट्र,
मौत का कारण:- बुबोनिक प्लेग
पिता:- खंडोजी नेवशे पाटिल
माता:- लक्ष्मी
पति:- ज्योतिबा फुले
जाति:- माली
सावित्री बाई फुले की शादी की उम्र:- 10 वर्ष
संतान: नहीं थी लेकिन यशवंतराव को गोद लिया था जो कि एक ब्राह्मण विधवा से उत्पन्न पुत्र थे.
पढाई: शादी के समय तक सावित्री बाई पढ़ी लिखी नहीं थीं लेकिन उनके पति ने उन्हें घर पर पढाया था. उन्होंने 2 साल के टीचर प्रशिक्षण कार्यक्रम में हिस्सा लिया था. पहला संस्थान अहमदनगर में एक अमेरिकी मिशनरी सिंथिया द्वारा संचालित संस्थान में था और दूसरा कोर्स पुणे के एक नॉर्मल स्कूल में था.
विशेष उपलब्धियां: सावित्रीबाई को देश की पहली भारतीय महिला शिक्षक और प्रधानाध्यापिका माना जाता है. वर्ष 2018 में कन्नड़ में सावित्रीबाई फुले की जीवनी पर एक फिल्म भी बनायी गयी थी. इसके अलावा 1998 में इंडिया पोस्ट ने उनके सम्मान में डाक टिकट भी जारी किया था. वर्ष 2015 में, उनके सम्मान में पुणे विश्वविद्यालय का नाम बदलकर सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय कर दिया गया था.
सावित्रीबाई द्वारा सामाजिक कार्य
सावित्रीबाई ने अपने पति के साथ मिलकर कुल 18 स्कूल खोले थे. इन दोनों लोगों ने मिलकर बालहत्या प्रतिबंधक गृह नामक केयर सेंटर भी खोला था.इसमें बलात्कार से पीड़ित गर्भवती महिलाओं को बच्चों को जन्म देने और उनके बच्चों को पालने की सुविधा दी जाती थी.
उन्होंने महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए महिला सेवा मंडल की स्थापना की थी. उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी अभियान चलाया और विधवा पुनर्विवाह की वकालत की थी.
सावित्रीबाई का शिक्षा के लिए संघर्ष
सावित्रीबाई फुले को दकियानूसी लोग पसंद नहीं करते थे. उनके द्वारा शुरू किये गये स्कूल का लोगों ने बहुत विरोध किया था. जब वे पढ़ाने स्कूल जातीं थीं तो लोग अपनी छत से उनके ऊपर गन्दा कूड़ा इत्यादि डालते थे, उनको पत्थर मारते थे. सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में लेकर चलती थीं और स्कूल पहुँच कर गंदी कर दी गई साड़ी बदल लेती थीं. लेकिन उन्होंने इतने विरोधों के बावजूद लड़कियों को पढाना जारी रखा था.
उससे पहले गुलाम भारत में महिलाओं को पढ़ने-लिखने का अधिकार नहीं था. आज उनकी जयंती पर उनके द्वारा किए गए योगदान को समझना और जानना और भी जरूरी हो जाता है कि कैसे उन्होंने उस दौर में स्त्रियों के अधिकारों, अशिक्षा, छुआछूत, सतीप्रथा, बाल या विधवा-विवाह जैसी कुरीतियों पर आवाज उठाई होगी? कैसे उन रूढ़िवादी परंपराओ को तोड़कर महिलाओं को पढ़ने व आगे बढ़ने की राह दी होगी और देश की आधी आबादी महिलाओं को शिक्षा के माध्यम से मुख्यधारा में ला खड़ा किया होगा. लेकिन, ऐसी समाज सेविका जिन्होंने सामाजिक कुरीतियां के खिलाफ आवाज उठाई, क्या हम उनके योगदान और बलिदान के साथ न्याय कर पाए?
कौन थी माता सावित्री बाई फुले
जनवरी 1831 में महाराष्ट्र के सतारा जिले में स्थित नायगांव नामक छोटे से गांव में जन्मी सावित्री बाई फुले ने अपने पति दलित चिंतक व समाज सुधारक ज्योतिराव फुले से पढ़कर सामाजिक चेतना फैलाई. देश की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले एक मिसाल, प्रमाण और प्रेरणा हैं कि अगर दृढ़ संकल्प और इच्छाशक्ति हो तो समाज में नई चेतना का विस्तार किया का सकता है.
जिस समय सावित्री बाई फुले ने शिक्षा की ज्योति जलाई उस समय लड़कियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता था, इसके बावजूद भी, उन्होंने नारी शिक्षा के बीड़े को अंजाम तक पहुंचाया और इसके बाद ही समाज से कुंठित वर्ग की नारियां भी शिक्षा ग्रहण करने के लिए आगे आने लगीं.
पिता के विरोध के बावजूद पढ़ाई की
मात्र 10 साल की उम्र में सावित्री बाई फुले का विवाह हुआ और जब उनका विवाह हुआ तब वह अनपढ़ थीं. ज्योतिबा फुले भी तीसरी कक्षा तक ही पढ़े थे. जिस दौर में सावित्री बाई फुले पढ़ने का सपना देख रही थीं. उस दौर में अस्पृश्यता, छुआछूत, भेदभाव जैसी कुरीतियां चरम पर थीं. उसी दौरान की एक घटना के अनुसार एक दिन सावित्री अंग्रेजी की किसी किताब के पन्ने पलट रही थीं, तभी उनके पिताजी ने देख लिया. वह दौड़कर आए और उनके हाथ से किताब छीनकर घर से बाहर फेंक दी कारण सिर्फ़ इतना था कि शिक्षा का हक़ केवल उच्च जाति के पुरुषों को ही था. दलित और महिलाओं के लिए शिक्षा ग्रहण करना पाप था.
बस उसी दिन से वह किताब वापस लाकर प्रण कर बैठीं कि कुछ भी हो जाए वह एक न एक दिन पढ़ना जरूर सीखेंगी. इसी लगन से उन्होंने एक दिन ख़ुद पढ़कर अपने पति ज्योतिबा राव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 18 स्कूल खोले. उन्होंने 1848 में महाराष्ट्र के पुणे में देश के सबसे पहले बालिका स्कूल की स्थापना की थी और अठारहवां स्कूल भी पुणे में ही खोला गया था. उन्होंने 28 जनवरी, 1853 को गर्भवती बलात्कार पीड़ितों के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की.
सावित्री बाई फुले और ज्योतिबा ने 24 सितंबर, 1873 को सत्यशोधक समाज की स्थापना की. उन्होंने विधवा विवाह की परंपरा भी शुरू की और इस संस्था के द्वारा पहला विधवा पुनर्विवाह 25 दिसंबर 1873 को कराया गया. ज्योतिबा के निधन के बाद सत्यशोधक समाज की जिम्मेदारी सावित्रीबाई फुले पर आ गई. उन्होंने इस जिम्मेदारी को बख़ूबी निभाया.
सावित्री बाई फुले को आधुनिक मराठी काव्य की अग्रदूत भी माना जाता है. वह अपनी कविताओं और लेखों में हमेशा सामाजिक चेतना की बात करती थीं. उनकी बहुत सी कविताएं हैं जिससे पढ़ने-लिखने की प्रेरणा मिलती है, जाति तोड़ने और ब्राह्मण ग्रंथों से दूर रहने की सलाह भी मिलती है. सावित्री बाई फुले इस देश की पहली महिला शिक्षिका होने के साथ-साथ, समाज के वंचित तबक़े ख़ासकर स्त्रियों और दलितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करने के लिए हमेशा याद की जाएंगी.
ऐसी क्रांतदर्शी, दलित एवं महिला हितैषी महामना महिला के कामों को आगे बढ़ाने हेतु ही दिल्ली सरकार ने दिल्ली की शिक्षा व्यवस्था पर खासा ज़ोर दिया है. शिक्षित राष्ट्र, समर्थ राष्ट्र सिर्फ एक नारा नहीं है, यह सपना है दिल्ली सरकार का जिसे पूरा करने के उद्देश्य से ही वह अपने कुल बजट का 26 प्रतिशत शिक्षा पर खर्च करती है. आज दिल्ली के सरकारी स्कूलों के स्तर में गुणात्मक और गणनात्मक सुधार हुआ है, जिससे इन बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ा है.
सारांश के तौर पर अगर यह कहा जाये कि अगर आज के ज़माने में महिला सशक्तिकरण इतना अधिक हुआ है तो इसका सबसे पहला श्रेय सावित्रीबाई फुले को जाता है.